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झारखंड अपनी प्राचीन इतिहास, मंदिर, खनिज और अपनी प्राकृतिक संपदा के लिए पूरे दुनिया भर में जाना जाता है। झारखंड पहाड़ों और जंगलों से घिरा हुआ प्रदेश है। यहां अनेक मंदिर हैं जिसे देखने के लिए पर्यटक दूर-दूर से आते हैं, इन्हीं मंदिरों में से एक है चतरा जिला के इटखोरी प्रखंड में स्थित मां भद्रकाली मंदिर। भैरवी एवं दामोदर नदी के संगम पर रजरप्पा की मां छीनमस्तिका पलामू जिले के नगर स्थित मां उग्रतारा एवं चतरा जिले के इटखोरी में स्थित मां भद्रकाली तथा हंटरगंज में स्थित मां कौलेश्वरी प्रागैतिहासिक काल से शक्ति स्वरूपा मां भगवती के प्रसिद्ध पूजा स्थल रहा है।
गजेटियर में इसका नाम भदौली अंकित है।
इटखोरी का नामकरण बुद्ध काल से ही संबंध है प्राचीन ईतखोई का परिवर्तित नाम इटखोरी है। नाम के संबंध में किंवदंती है कि यहां गौतम बुद्ध अटु साधना में लीन थे। उसी समय उनकी मौसी प्रजापति उन्हें कपिलवस्तु वापस ले जाने हेतु आई। किंतु तथागत बुद्ध का ध्यान मौसी के आगमन से भी नहीं टूटा। मौसी के मुख से अचानक “ईतखोई” शब्द निकला इसका अर्थ होता है यही खोई अर्थात पुत्र रत्न सिद्धार्थ तपस्या में यही खो गया।
मां भद्रकाली मंदिर को भदुली धाम के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर महाने और बाक्सा नदी के पवित्र संगम पर स्थित है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भदुली प्रागैतिहासिक काल, महाकाव्य काल तथा पुराण काल से संबंधित है।
प्रागैतिहासिक स्थल
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह स्थल प्रागैतिहासिक है एवं महाकाव्य काल, पुराण काल से संबंधित है। किंवदंती है कि वनवास काल के दौरान श्री राम, लक्ष्मण एवं माता सीता इस स्थल में निवास किए थे। धर्मराज युधिष्ठिर के अज्ञातवास स्थल तथा तपोभूमि भी यही क्षेत्र था।
राजा सूरथ जिनकी राजधानी हंटरगंज के पास कुलेश्वरी पहाड़ पर थी। एक यमन राजा से युद्ध में पराजित होकर इटखोरी पहुंचे। इटखोरी स्थित मेघामुनि आश्रम के होम की गंध तथा पुष्पों से सुभाषित पवित्र वातावरण के प्रभाव से हिंसक जी भी अपनी हिंसा छोड़ देते थे। इन्हीं सब कुछ देखकर राजा सूरथ इस आश्रम में रुके।
समाधि वैश्य जिसने अपार धन अर्जित किया था लेकिन उनके परिजनों ने धन लोग के चक्कर में घर से उन्हें निकाल दिया था इसलिए वह भागते हुए मेधामुनि के आश्रम पहुंचे फिर भी असुर अपराजित रहे । अंत में देवी भद्रकाली ने भयंकर भूख पैदा कर दानवों को निगलना आरंभ किया। योगिनियों की सहायता से मां भद्रकाली ने अंत में महासुर शंखचूड़ के गाणो का संहार कर दिया और महादेव ने अपने त्रिशूल से शंखचूड़ को भस्म कर दिया। राजा सूरथ एवं समाधि वैश्य मुनी से आशीर्वाद लेकर आश्रम के पास महाने नदी के तट पर सघन वन तमासिन में तपस्या में लीन होकर मां भद्रकाली का जाप करने लगे। मां भद्रकाली प्रकट होकर आशीर्वाद दिया। आशीर्वाद के प्रभाव से संपूर्ण आध्यात्मिक भौतिक शक्ति से परिपूर्ण होकर राजा ने शत्रुओं का नाश किया एवं पुनः राज्य प्राप्त किया। समाधि वैश्य के आशीर्वाद के प्रभाव से भूत देवी धाम मोक्ष प्राप्त किया।
ऐतिहासिकता
जैन धर्म के दास में तीर्थंकर शीतल नाथ का जन्म स्थल माना जाता है शीतल नाथ का जोड़ा चरण चिन्ह पाषाण पर अंकित परिसर से मिला है इस स्थल से एक मनुष्य में ताम्र पत्र भी मिला था जिस पर अंकित था ‘शीतलनाथ’ शीतलनाथ का काल दशमी शताब्दी ईसा पूर्व है।
भद्रकाली मंदिर का वीडियो देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें
https://youtu.be/zc3p06PXhMk
मंदिर का निर्माण – भद्रकाली मंदिर का निर्माण पाल वंश के शासक महेंद्र पाल ने करवाया था जिनका शासन काल 988 ई० से 1038 ई० के बीच था। महेंद्र पाल बंगाल का शासक था जिसके अधीन मगध था और भदुली मगध के अधीन था।
तीन धर्म का संगम स्थल- यह मंदिर तीन धर्म हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म का संगम स्थल है। हिंदू जहां आराध्य देवी मां काली की पूजा करते हैं वहीं बौद्ध धर्म के लोग मां तारा और जैन धर्म के लोग जैन धर्म के दसवें तीर्थंकर स्वामी शीतल नाथ जी का जन्म स्थान होने के अपनी आस्था रखते हैं।
अगर आप झारखंड के तीर्थ स्थलों के घूमने के बारे में सोच रहे हैं तो आपको चतरा जिला का इटखोरी के भद्रकाली मंदिर घूमने के लिए जरूर आना चाहिए। यहां आकर आप असीम शांति का अनुभव करेंगे।
मुख्य मंदिर – भद्रकाली मंदिर 158 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां मुख्य मंदिर के अलावा कई अन्य मंदिर हैं। मुख्य मंदिर में मां भद्रकाली की प्रतिमा अष्टधातु से निर्मित है जिस पर काल का प्रभाव आज तक नहीं हुआ है। मंदिर के चारों कोनों में भगवान बुद्ध की ध्यान मग्न प्रतिमाएं हैं। इस मंदिर को भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भक्त मां भद्रकाली से जो भी मन्नतें मांगते हैं उनकी सभी मुरादे पूरी हो जाती हैं इसलिए यहां भक्तों की भारी भीड़ प्रत्येक दिन लगी रहती है।
सहस्त्र शिवलिंग एवं नंदी – यहां एक खुला हुआ शिवालय है। पूर्व में द्वार पर तीन पाषाण स्तंभ बिना जोड़ के थे किंतु वह गिर गए। स्तंभों पर कलात्मक नक्काशी है। जड़ के पास कमल दल उत्कीर्ण है। यहां सहस्त्र शिवलिंग शिव की मूर्ति है जिसमें 1008 छोटे-छोटे शिवलिंग उत्कीर्ण है। शिवालय के बाहर द्वार पर बीचो-बीच शिव वाहन नंदी की विशाल प्रतिमा है। यह प्रतिमा एक ही विशाल पत्थर को तरास कर बनाई गई नेपाल स्थित पशुपतिनाथ मंदिर की प्रतिमा जैसा लगता है। मंदिर जिर्णोद्धार के पूर्व यहां नाग नागिन की एक जोड़ा रहता था जिसके दर्शन पराया हुआ करता था। किंतु अब यह जोड़ा वट वृक्ष के एक कोटर में रहती है।
बौद्ध स्तूप – मंदिर परिसर में ही 15 फीट ऊंचा विशाल बौद्ध स्तूप है यह स्तूप मंदिर के उत्तर पश्चिम दिशा में है इस स्तूप में 1004 छोटे तथा चार बड़े विभिन्न मुद्राओं में भगवान बुद्ध की प्रतिमा है यह स्तूप वर्तमान में 6- 7 फीट ही ऊंचा दिखता है। कहा जाता है कि आधे से अधिक भाग धरातल में दब गया है। यह स्तूप चमत्कार से कम नहीं है क्योंकि इस स्तूप के ऊपरी हिस्से में बने गड्ढे से जल हमेशा रिस्ते रहता है जो आज भी विज्ञान के लिए एक पहेली है। जो भी भक्त मां भद्रकाली मंदिर आते हैं वे इस बौद्ध स्तूप को देखना नहीं भुलते हैं।
शीतल नाथ के चरण चिन्ह- मुख्य मंदिर के पश्चिम में एक पाषाण खंड पर चरण चिन्ह उत्कीर्ण है जिन्हें जैन धर्म के १०वें तीर्थंकर शीतलनाथ का चरण चिन्ह माना जाता है। इस स्थल को जैन धर्म में शीतला स्वामी के जन्म स्थान के रूप में माना जाता है। जैन धर्म के लोग मां भद्रकाली को भदुली मां के नाम से पुकारते हैं। उत्खनन से प्राप्त ताम्रपत्र पर अंकित लेख पढ़ने के बाद ही इसकी सही जानकारी हो सकती है।
पंचमुखी हनुमान जी का मंदिर – भद्रकाली मंदिर के बगल में ही भगवान श्री राम के भक्त बजरंगबली जी की एक पंचमुखी प्रतिमा भी है।
शनि देव का मंदिर – पंचमुखी हनुमान जी के मंदिर के बगल में हीं शनिदेव का भी मंदिर बनाया गया है जहां पूजा अर्चना करने के लिए भक्त दूर-दूर से पहुंचते हैं।
शीतल नाथ जी का मंदिर – मुख्य मंदिर के उत्तर पश्चिम दिशा में जैन धर्म के दास में तीर्थंकर शीतल नाथ जी का मंदिर है ऐसा कहा जाता है कि भदौली में ही शीतल नाथ जी का जन्म हुआ था 1983 ईस्वी में खुदाई में भगवान शीतल नाथ के “जोड़ चरण” प्राप्त हुए हैं जिसे मंदिर परिसर में स्थित म्यूजियम में रखा गया है।
शाही वन पोखर – बगीचा से सटे राजा का वन पोखर था जो सुरंग द्वारा मुहाने नदी से जुड़ा हुआ था। कहा जाता है कि इस पोखर में विभिन्न प्रकार के कमल पुष्प उगते थे एवं 100 कमल पुष्प प्रतिदिन मां को अर्पित किए जाते थे।
कोटेश्वर स्थान का तालाब – सहस्त्र बुद्ध स्तूप के पास एक प्राचीन तालाब है। खुदाई के क्रम में राज प्रसाद की चारदीवारी के अवशेष के रूप में भाले, सीकड़ आदि प्राप्त हुए थे। बौद्ध देवी तारा की प्रतिमाओं का उल्लेख गजेटियर में है किंतु इनमें से एक भी प्रतिमा यहां उपलब्ध नहीं है।धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्थल मां भद्रकाली परिसर में बड़े पैमाने पर मुंडन विवाह आदि के लिए एक उपयुक्त स्थल है।
म्यूजियम- भद्रकाली मंदिर परिसर में खुदाई से प्राप्त हिंदू बौद्ध और जैन धर्म के साक्ष्य मिले हैं, जहां खुदाई से प्राप्त मूर्तियों, शिलालेखों, शीला स्तंभ आदि को संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है। जो भी भक्त मां भद्रकाली मंदिर में पूजा करने के लिए आते हैं वे इस संग्रहालय में जाकर प्राचीन अवशेषों को देख सकते हैं। म्यूजियम में जाने का शुल्क ₹5 है।
राम जानकी मंदिर – मंदिर परिसर में ही राम जानकी मंदिर है, इस मंदिर में भगवान राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण, भगवान श्री गणेश और विश्व के पहले निर्माता विश्वकर्मा जी की प्रतिमा स्थापित की गई है।
कनूनिया माई का मंदिर – मां भद्रकाली मंदिर से करीब 500 मीटर की दूरी पर मां कनूनिया माई का मंदिर है।
इटखोरी महोत्सव – झारखंड सरकार द्वारा वर्ष 2015 से हर वर्ष 19 से 21 फरवरी के बीच इटखोरी महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर देश-विदेश से कलाकार मंदिर परिसर में अपने जलवा बिखरने आते हैं। दोस्तों आपको जब भी समय मिले मां भद्रकाली मंदिर के दर्शन के लिए आप एक बार पूरे परिवार के साथ अवश्य पधारे और माता भद्रकाली का आशीर्वाद प्राप्त करें।
भद्रकाली मंदिर कैसे पहुंचे – भद्रकाली मंदिर पहुंचने के लिए आप सड़क मार्ग रेल मार्ग और हवाई मार्ग से आ सकते हैं सड़क मार्ग से आने के लिए आपको चतरा जिला मुख्यालय आना होगा जहां से इसकी दूरी 35 किलोमीटर है। चौपारण से 19 किलोमीटर, हजारीबाग से 52 किलोमीटर, राज्य की राजधानी रांची से 149 किलोमीटर, गया से 90 किलोमीटर, कोलकाता से 427 किलोमीटर, वहीं देश की राजधानी नई दिल्ली से 1080 किलोमीटर मां भद्रकाली मंदिर की दूरी है।
रेलवे मार्ग – अगर आप रेल मार्ग से आना चाहते हैं तो निकटतम रेलवे स्टेशन कटकमसांडी रेलवे स्टेशन है जहां से मंदिर 28 किलोमीटर, हजारीबाग रेलवे स्टेशन से 52 किलोमीटर और कोडरमा जंक्शन से भद्रकाली मंदिर की दूरी 63 किलोमीटर है।
हवाई मार्ग – भद्रकाली मंदिर के निकटतम हवाई अड्डा बिरसा मुंडा हवाई अड्डा रांची है जहां से मंदिर की दूरी 152 किलोमीटर और गया हवाई अड्डा की दूरी 85 किलोमीटर है।